Details
औलाद की अच्छी तर्बियत करना माँ-बाप की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है. लेकिन अगर माँ-बाप ही दीन से गाफिल हो तो.........?
कुर्आने करीम ने इर्शादे बारी तआला है, "और याद करो जब इब्राहीम ने अपने बाप आज़र से कहा,क्या आप मूर्तियों को मा'बूद (उपास्य) बना रहे हैं? मैं आपको और आपकी कौम को खुली गुमराही में देख रहा हूँ.' (सूरह अन्आम : 74)
अगर औलाद दीनदार हो और अल्लाह ने उन्हें दीन की सहीह समझ दी हो तो उनकी ज़िम्मेदारी है कि वो भले तरीके से अपने औलिया (अभिभावकों) को दीने-हक के बारे में जानकारी दें.
यह किताब भी सलीम रऊफ साहब की लेखनी का एक और नायाब हीरा है जिसे कुछ ज़रूरी बदलाव के साथ आपकी सेवा में पेश किया जा रहा है.
Specifications
Pages |
24 |
Size |
10.5x18.5cm |
Weight |
25g |
Status |
Ready Available |
Edition |
Ist Edition |
Printing |
Double Colour |
Paper |
Maplitho |
Binding |
Paper Back |