आदर्श मुस्लिम पब्लिकेशन : परिचय
आदर्श मुस्लिम पब्लिकेशन जोधपुर के कयाम (स्थापना) का यही मकसद (उद्देश्य) है.
गलतफहमियाँ और उनका इज़ाला (निवारण) :
गलतफहमियाँ दो किस्म की होती हैं,
01. नेगेटिव (नकारात्मक) विचारधारा के लोगों द्वारा इस्लाम के बारे में फैलाई गई सोच : जिनके मन में इस्लाम के प्रति खुन्नस है, वे लोग सहीह बात सुनना और समझना ही नहीं चाहते; उनके द्वारा फैलाई गई गलतफहमियों का इतना ठोस व तर्कसंगत जवाब दिया जाना चाहिये कि वे दूसरे लोगों को गुमराह न कर सकें.
02. इस्लाम के बारे में पहले से बनाई हुए नज़रिये (पूर्वाग्रह) के कारण इस्लाम के प्रति गलत विचार रखना : ऐसे लोगों को जब हकीकत का पता चलता है तो वे सच को कुबूल करते हुए अपनी सोच बदल भी लेते हैं.
आदर्श मुस्लिम पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किताबें, दोनों प्रकार की गलतफहमियों को दूर करने में काफी कारगर षाबित होती हैं.
हर मुस्लिम की ज़िम्मेदारी क्या है?
कई लोग ऐसे होते हैं जो एक पक्ष जानने के बाद दूसरा पक्ष भी जानना चाहते हैं. ऐसे लोग हमेशा हक की तलाश में रहते हैं. अगर उनके पास हक बात पहुँचा दी जाए तो न सिर्फ उनकी जिज्ञासा शांत होती है बल्कि वे लोग दूसरों की गलतफहमियों को भी दूर करने में मददगार षाबित होते हैं. आज के दौर में हर मुस्लिम की दो अहम (महत्वपूर्ण) ज़िम्मेदारियाँ हैं,
01. दीनी इल्म (इस्लामी ज्ञान) हासिल करना :
अल्लाह के रसूल (ﷺ) का इर्शाद है, "पहुँचा दो मेरी तरफ से, अगरचे एक आयत ही क्यूँ न हो ।' इस फरीज़े को शहादते अलन्नास (लोगों के सामने दीने इस्लाम की गवाही) कहा गया है. कयामत के दिन अल्लाह तआला हर मुसलमान से इसके बारे में सवाल करेगा. कुरान करीम में सबसे पहले अल्लाह तआला ने अपने नबी (ﷺ) पर ये आयतें नाज़िल कीं, "पढो, अपने रब के नाम से जिसने हर चीज़ की रचना की. जिसने इन्सान को खून के लोथडे से पैदा किया. पढो कि तुम्हारा रब बडा ही करम वाला है. जिसने कलम के ज़रिये (इल्म/ज्ञान) सिखाया. जिसने इन्सान को वह सिखाया, जो वो नहीं जानता था.' (सूरह अलक : 1-5)
02. इस्लाम की दा'वत (आमंत्रण) :
सूरह अलक की इन पाँच आयतों के नुज़ूल (अवतरण) के बाद काफी दिनों तक कुरान नाज़िल होने का सिलसिला रूका रहा. फिर अल्लाह तआला ने सूरह मुद्दस्सिर नाज़िल की और अपने नबी (ﷺ) से इर्शाद फर्माया,
'ऐ कपडा ओढकर सोने वाले! खडे हो जाओ और (लोगों) को खबरदार करो. और अपने रब की तक्बीर (महिमा) बयान करो.' (सूरह मुद्दस्सिर : 1-3)
अब हम इन दोनों को एक क्रम में रखकर सोचें, गौर करें तो हमें पता चलता है कि हर मुस्लिम की ज़िम्मेदारी है कि सबसे पहले वो अपने दीन इस्लाम से जुडी, हर छोटी-बडी जानकारियों का इल्म (ज्ञान) हासिल करे, जो भी जानकारी उसे मिल जाए उसके बारे में दूसरे लोगों को बताए.
आदर्श मुस्लिम पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किताबें -इन दोनों कामों यानी इल्म हासिल करने और लोगों तक पहुँचाने- में आपके लिये काफी मददगार षाबित होंगी, इंशाअल्लाह! क्योंकि आदर्श मुस्लिम पब्लिकेशन में हर किताब, पूरी तहकीक (रिसर्च) व हत्तल इम्कान तस्हीह (यथासम्भव त्रुटि संशोधन) के बाद प्रकाशित की जाती हैं.
आदर्श मुस्लिम पब्लिकेशन में प्रकाशन की प्रक्रिया :
01. मैटर का चयन, पूरी रिसर्च के बाद लेखन : सबसे पहले विषय से जुडे तमाम ज़रूरी तथ्य इकट्ठे किये जाते हैं । फिर उनके आधार पर सटीक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए लिखने का काम शुरू किया जाता है । कम्पोज़िंग के दौरान या उसके बाद अगर किसी मैटर की सनद पर शक हो जाए तो काबिल उलमा से मश्वरा किया जाता है
02. तर्जुमा करते वक़्त एहतियात बरतना : एक भाषा से दूसरी भाषा में किसी मैटर को मुन्तकिल (ट्रांसफर) करना बच्चों का खेल नहीं है. एक शब्द के एक से ज़्यादा मतलब होते हैं, मौके की नज़ाकत को महसूस करते हुए सहीह शब्द का चुनाव वही कर सकता है जिसे यह समझ में आ जाए कि लेखक कहना क्या चाहता है? कई बार किसी भाषा में कोई बात मुहावरे के अंदाज़ में कही जाती है अगर उसका हू-ब-हू तर्जुमा कर दिया जाए तो "अर्थ का अनर्थ' हो जाता है. सहीह तर्जुमा वही कर सकता है जिसे उन दोनों भाषाओं के ग्रामर (व्याकरण) की भी जानकारी हो.
03. तर्जुमा के दौरान विवादास्पद और गलत मैटर को हटाना : शाह वलीउल्लाह मुहद्दिष देहलवी ने कहा था, "अल्लाह के रसूल (ﷺ) के अलावा दुनिया में कोई भी इन्सान ऐसा पैदा नहीं हुआ जिसकी कही हुई हर बात हक हो.' इमाम अबू हनीफा (रहि) ने फर्माया था, "अगर मेरी कही हुई कोई बात अल्लाह के रसूल (ﷺ) के कौल से टकरा जाए तो उसे दीवार पर दे मारना.' हमारा अमल इसी पर है. किसी भी अच्छे से अच्छे लेखक या आलिम के बारे में यह दावा नहीं किया जा सकता है कि उसके लेखन में गलती की कोई गुंजाइश नहीं है. अल्हम्दुलिल्लाह! आदर्श मुस्लिम पब्लिकेशन में ऐसी कोताहियाँ नहीं बरती जाती.
04. पूरे एहतियात के साथ तस्हीह (प्रूफ रीडिंग) : कंप्यूटर पर कम्पोज़िंग का काम पूरा हो जाने के बाद बहुत संजीदगी के साथ उसकी चैकिंग की जाती है ताकि गलती के इम्कान (सम्भावनाएं) न के बराबर हो जाए. भरसक कोशिश करने के बावजूद खुदा-न-ख्वास्ता प्रिण्टिंग के बाद अगर कोई छोटी गलती रह जाती है तो उस पर स्टिकर चिपकाकर ठीक किया जाता है और ज़्यादा बडी गलती होने पर पूरी किताब को रद्द कर दिया जाता है.
05. बेहतरीन कागज़ व बेमिषाल प्रिण्टिंग : कुरान अल्लाह का कलाम है, हदीष अल्लाह के रसूल (ﷺ) के कौल, फेअल व रज़ामंदी का नाम है, इस्लाम अल्लाह का पसंदीदा दीन है. इसलिये दीने-इस्लाम से जुडी हर बात को बेहतरीन कागज़ पर छापना चाहिये. हमारी यह सोच है कि घटिया कागज़ का इस्तेमाल करना और सस्ती छपाई करवाना, दीने-इस्लाम की तौहीन करने के बराबर है.
अज़ीज़ाने गिरामी! अब तक जो कुछ आपने पढा उससे आपको यह एहसास यकीनन हुआ होगा कि हम अपना फर्ज़ समझकर दीनी किताबों की इशाअत करते हैं. हद दर्जा एहतियात बरतने के कारण हमारे यहाँ किताबों की लागत ज़्यादा पडती है, लेकिन इसके बावजूद हम इन किताबों को बे हद रिआयती कीमत पर लोगों के लिये मुहैया कराते हैं. सस्ती कीमत पर प्रकाशन का काम करने वाले लोग तहकीक हर्गिज़ नहीं कर सकते. लेकिन इसका नुक्सान पाठक (रीडर) को गलत तथ्यों पर आधारित किताबों के रूप में भुगतना पडता है. हमारी सोच है कि गलत बात कहने से बेहतर है, चुप रहना और गलत चीज़ छापने से बेहतर है, पब्लिशर बनने का "शौक' दिल से निकाल देना.
आदर्श मुस्लिम पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित किताबें, अपनी सरल भाषा और खूबसूरत प्रजेण्टेशन (सुन्दर प्रस्तुतिकरण) द्वारा जिज्ञासु लोगों के मन में उठने वाले सवालों का तर्कसंगत जवाब उपलब्ध कराती हैं.