Hijrat

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Details

हिजरत की इस्लाम में बहुत ज्यादा अहमियत है. जिस इलाके में मुसलमानों का, मुस्लिम पहचान के साथ जीना मुश्किल हो, जहाँ उसके ईमान को चोट पहुँचाई जाती हो, जहाँ उसके दीनी फरीजे पूरी आज़ादी के साथ अदा न हो सकते हों, जहाँ दूसरी कौमों के लोग उनके साथ अछूतों जैसा बर्ताव करते हों तो फिर ऐसी हालत में उस इलाके के मुसलमानों की ज़िम्मेदारी है कि वो ऐसे इलाके में चले जाएं जहाँ वे अपने ईमान पर मज़बूती से कायम रह सकें. आज दुनिया भर में साम्प्रदायिक सद्भाव तार-तार हो चुका है. एक सोची-समझी साज़िश के तहत हर जगह बहुसंख्यक गैर-मुस्लिमों के दिमाग में मुसलमानों के प्रति नफरत और दुर्भावना भर दी गई है. जहाँ कहीं भी दंगा होता है उसके बाद मुसलमानों के साथ सामाजिक बहिष्कार का सिलसिला शुरू हो जाता है. ऐसे हालात में मुसलमान क्या करें? इस्लाम अपने मानने वालों को घुट-घुटकर जीने की इजाज़त नहीं देता. अगर किसी जगह पर मुसलमानों का ईमान महफूज़ न हो, जहाँ उसकी जान, माल व इज्जत-आबरू खतरे में हो तो उस सूरत में हिजरत करना मुसलमानों पर वाजिब हो जाता है. जो लोग ईमानवाले होने का दा'वा करते हैं और अगर उनको किसी इलाके में मुसलमान होने की वजह से सताया जाता है और वे अपने माल-दौलत, कारोबार या आलीशान घर के लालच में उस इलाके से हिजरत नहीं करते हैं तो गोया उनके ईमान में खोट है. हिजरत करना अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुन्नत है. इस किताब में हिजरत के बारे में तमाम पहलुओं पर चर्चा की गई है. उम्मीद है कि यह किताब हिजरत जैसे अहम मुद्दे पर पाठकों की रहनुमाई करेगी, इंशाअल्लाह!

Specifications

Pages 32
Size 14x22cm
Weight 55g
Status Ready Available
Edition Ist Edition
Printing Double Colour
Paper Maplitho
Binding Paper Back