Details
यह एक अटल सच्चाई है कि जो भी जानदार इस दुनिया में पैदा हुआ उसे एक दिन मरना है. अल्लाह तआला के सिवा कोई चीज़ लाफानी (अजर-अमर) नहीं है. मगर अफसोसनाक बात यह है कि दुनियावी रंगीनियों में खोकर लोग आखिरत की ज़िन्दगी को भुला बैठे हैं. ये किताब बिस्तरे-मर्ग (मृत्यु शैया) पर पड़े एक इन्सान के मौत के बारे में तसव्वुर (कल्पना) पर आधारित है. जब इन्सान अस्पताल के बेड पर होता है तब वो मौत को करीब से महसूस करता है; खासकर उस वक्त जब डॉक्टर उसके अकरबा (परिजनों) को दुआ करने के लिये कह रहे होते हैं. ये वो लम्हा होता है जब डॉक्टर भी अल्लाह की कुदरत के आगे सरेण्डर (आत्म-समर्पण) कर देते हैं. यह छोटी सी किताब नसीहत है, हर उस शख्स के लिये जो आखिरत पर यकीन रखता है ।
Specifications
| Pages |
24 |
| Size |
10.5x18.5cm |
| Weight |
25g |
| Status |
Ready Available |
| Edition |
IInd Edition |
| Printing |
Single Colour |
| Paper |
Maplitho |
| Binding |
Paper Back |