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हज़रत मुहम्मद (सल्लल लाहु अलेहि व सल्लम) अल्लाह के आखिरी रसूल हैं. उनके बाद अब कोई नबी दुनिया में नहीं आएगा. आज लोगों की बड़ी ता'दाद अल्लाह के वजूद को नकार रही है, वहीं बहुत से लोग शिर्क में मुलव्विस (लिप्त) हैं. जब शैतान इन्सानों को गुमराह कर रहा है तो मुस्लिम समाज की ज़िम्मेदारी है कि वो अल्लाह के बन्दों तक उसकी वहदानियत और अज़्मत का पैगाम पहुँचाए. ये ज़िम्मेदारी बहुत बड़ी है और उसी वक्त अदा हो सकती है जब लोगों के मन में फैली गलतफहमियों का सटीक जवाब हमारे पास मौजूद हो.ये किताब उस अज़्मत (महानता) और जलाल वाले (प्रतापवान्) अल्लाह की हम्दो-षना (प्रशंसा-वंदना) से शुरू होती है और सबसे पहले उन लोगों के (कु) तर्कों को प्रस्तुत करती है जो कहते हैं कि ईश्वर (अल्लाह) नहीं है.फिर उसके बाद यह किताब ठोस व तर्कसंगत दलीलों के ज़रिये षाबित करने की कोशिश करती है कि अल्लाह का वजूद है. उसके बाद ये किताब षाबित करती है कि वो अल्लाह एक ही है और वही सबका इलाह (पूज्य) है. अगर एक से ज़्यादा इलाह होते तो ज़मीन व आसमान में फसाद (बिगाड़) पैदा हो जाता. अस्मा-ए-हुस्ना (अल्लाह के नामों) का बयान करते हुए ये किताब उसके कुछ गुणों के बारे मेंविस्तार से बताती है. वो खालिक है, रब्बुल आलमीन है, मालिक है, रहमानो-रहीम है, आलिमुल-गैब है, अज़ीज़ुल-जब्बार है, अहकमुल हाकिमीन है. ये किताब अल्लाह के उन एहसानों का ज़िक्र करती है जो उसने अपने बन्दों पर किये हैं. उसके बाद ये किताब शिर्क व कुफ्र की हकीकत बयान करती है. और मुस्लिमों को वो रब्बानी फर्मान बताती है जिसमें उसने कहा है कि दूसरों के माबूदों को भला-बुरा मत कहो. साथ ही मुस्लिमों को ये ऐलान करने का हुक्मे-इलाही सुनाती है, "लकुम दीनुकुम व लिय दीन' (तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन और मेरे लिए मेरा दीन). ये किताब तौहीद (एकेश्वरवाद) के विषय पर लिखी गई है जो तमाम इन्सानों के लिये मुफीद (लाभप्रद) है.
Specifications
Pages |
136 |
Size |
14x22cm |
Weight |
170g |
Status |
Ready Available |
Edition |
IInd Edition |
Printing |
Single Colour |
Paper |
Maplitho |
Binding |
Paper Back |